सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

संस्कृति के ठेकेदार

प्रिय मित्रो
नमस्कार


कल वी डे थामेरी उम्र के नवजवान अपने प्यार की खातिर अपनी महिला मित्रो के साथ गुलाब के फूलो से ये दिन मनाते हैहमारी संस्कृति में इस तरह का दिन मनाने की कोई जगह नहीं हैमै सहमत हूँ पर ये मेरी मर्जी है कि मै ये दिन मानू या मानूँ मुझे ये समझ में नहीं आता है कि जब अप इतने बड़े ठेकेदार है तो आप समाज में फैली और बुराइयों पे क्यों नहीं मुखर होते हैऔर हम लोकतंत्र में जीते है हमे पूरा हक है अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने कीऔर फिर जब लोकतंत्र में आस्था है तो आप विरोध के नाम पर कार्ड जलाकर..लोगो को पकड़ कर उन्हें पीटने और समझाने का हक आपको किसने दिया...इन संस्कृति के ठेकेदारों को चाहिए कि जरा गौर से बैठ के अपनी संस्कृति और उसमे अभी तक हुए कारनामो पर नज़र डालेंआपको बहुत कुछ पता चल जायेगा...और जो लोग प्यार का दिन मनाते है...उन्हें रोकने का हक या ठेका भारत का कानून आपको नहीं देता हैमेरी तो ये गुजारिश है की अगर प्यार के नाम पर कोई भद्दा काम कर रहा है तो आप प्रशासन से शिकायत करिये की आप ठेकेदार बनेगे...और कृपा करके संस्कृति के तो ठेकेदार ही बनिए...और कभी हमारे धर्म को नजदीक से देखिये, प्यार को तो बड़ी इज्जत दी गई है..कृष्ण का गोपियों से रास लीला तो जन जन में व्याप्त है...हालाकि मै कोई इस दिन का बहुत प्रबल समर्थक नहीं हूँपर विरोध का कारन भी तो नहीं समझ में आता है..और कृपा करके संस्कृति को तो बीच में बिलकुल ही खीचे...बड़ी कृपा होगी

जय हिंद

आपका वैभव

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