मेरी सारी कायनात जकड़ी हुई हैं इनमें ....
मगर देखने में नर्म हैं तेरी कलाइयां...
मैं अपनी किस्मत को बसाना चाहता हूँ इनमे.....
मगर हर बार झटक देती हैं तेरी कलाइयाँ......
मेरी जिंदगी की हर सांस फंसी है इनमे....
मगर मुझे छोड़ देती हैं तेरी कलाइयाँ .....
हरे रंग चूड़ियाँ घूमती है इनमे...
मगर बड़ी खूबसूरत हैं तेरी कलाइयां.....
मोहब्बत की सारी कहानियां हैं इनमे.....
मगर मुझे छूने नहीं देती हैं तेरी कलाइयां.....
मेरा कंगन पहना लो इन कलायिओं में ......
तो और हसीं हो जायंगी ये कलाइयां.......
मुझे पकड़ा दो अपनी ये नाज़ुक कलाइयां......
उम्र भर साथ देंगी मेरा फिर तेरी ये कलाइयां..........
1 टिप्पणी:
अति सुन्दर रचना अवस्थी जी...सच में आप कवि , शायर होते जा रहे हो....
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