बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

वृद्धाअवस्था

प्रिय मित्रों,
नमस्कार,



आज बहुत समय के बाद वापस ब्लॉग पर आना हुआ....कुछ जिंदगी की जद्दोजहद में ऐसे फंसे कि लिख ही नहीं पाए...आज लिखने का मूड इसलिए हो गया क्यूंकि आज सुबह मुझे एक वृद्धाअवस्था आश्रम में जाने का अवसर मिला.....मेरे अपने ही शहर में स्थिति इस आश्रम में जब मैं गया और वहां के बुजुर्गों से मिला और उनके जीवन और अनुभवों को सुना और उस दर्द को महसूस किया जो उनके दिलों में बसा हुआ था.........उनकी भीगी आँखों से उनके बारे में सुनते हुए मैं भी रोया....कुछ उनके सामने ..कुछ उनके पीछे.......आज कि इस भागती दौड़ती जिंदगी में क्या हमारे अन्दर अपने माँ- बाप तक के लिए सवेंदना समाप्त हो चुकी है....क्या पैसा ही जीवन में महत्वपूर्ण है....या हम सिर्फ अपने लिए ही जीने लगे हैं....इन्ही सवालों के उत्तर मैं अपने आप से पूछ रहा हूँ ..पर कोई सही उत्तर नहीं मिल पा रहा है......अंतर्द्वंद चल रहा है.......पर संतोष नहीं मिल पा रहा है.......हम इस आधुनिकता कि दौड़ में अंधे हो चुके हैं......जिस देश कि सभ्यता और संस्कृति कि हम दुहाई देते हैं...वहां के संस्कार ये तो न थे.......क्या हम ये भूल जाते हैं कि एक दिन ये बुढ़ापा हम पर भी आयेगा.
इस विचारधारा को बदलना ही होगा.....हमारे बुजुर्ग हमारी धरोहर है...हमारी संपत्ति हैं....वो पूरे सम्मान और अधिकारों के हक़दार हैं....


जय हिंद
जय भारत

आपका वैभव

1 टिप्पणी:

Vivek Trivedi ने कहा…

प्रिय मित्र वैभव,
मै आपकी और उन सब बुजुर्गों की मनोस्तिथी समझ सकता हूँ.आपकी जगह मै भी होता तो रो पड़ता.ऐसी औलादों के लिए तो गालियाँ भी नहीं निकलती. माता पिता पूरा जीवन हमारी खुसी में निकाल देते हैं और जब उनकी ख़ुशी की बात आती है तो वे स्वार्थी बन जाते हैं.अब आगे क्या बोलू